‘वारिस पंजाब दे’ कैदियों से इलेक्ट्रॉनिक गैजेट जब्त करने के मामले में डिब्रूगढ़ जेल अधिकारी नृपन दास गिरफ्तार !

डिब्रूगढ़ – पूर्वाेत्तर की सबसे पुरानी और सबसे उच्च सुरक्षा के लिये अपनी अलग पहचान रखने वाली जेल में अचानक ली गई तलाशी के दौरान खालिस्तानी समर्थक कैदियों के कब्जे से जब्त किए गए उपकरणों में एक सिम कार्ड के साथ एक स्मार्टफोन, एक कीपैड फोन, कीबोर्ड के साथ एक टीवी रिमोट, एक स्पाई-कैमरा पेन, पेन-ड्राइव, एक ब्लूटूथ हेडफोन और शामिल थे।
पुलिस ने कहा कि असम में डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल के अधीक्षक नृपन दास को कट्टरपंथी संगठन श्वारिस पंजाब डे से जुड़े कैदियों के कब्जे से स्मार्टफोन सहित इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की जब्ती के मामले में शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया था।एक अधिकारी ने बताया कि जेल अधिकारी को ढिलाई के लिए सुबह गिरफ्तार कर लिया गया और फिलहाल वह डिब्रूगढ़ सदर पुलिस स्टेशन में हैं।

उन्होंने कहा कि यह गिरफ्तारी पिछले महीने जेल में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के बंदियों की इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की जब्ती के संबंध में की गई थी।
खालिस्तानी समर्थक कैदियों के कब्जे से जब्त किए गए उपकरणों में एक सिम कार्ड के साथ एक स्मार्टफोन, एक कीपैड फोन, कीबोर्ड के साथ एक टीवी रिमोट, एक स्पाई-कैमरा पेन, पेन-ड्राइव, एक ब्लूटूथ हेडफोन और शामिल थे।
पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह ने एक्स पर पोस्ट किया था, ष्डिब्रूगढ़ जेल, असम में एनएसए बंदियों का संदर्भ – एनएसए सेल में होने वाली अनधिकृत गतिविधियों के बारे में जानकारी मिलने पर, एनएसए ब्लॉक के सार्वजनिक क्षेत्र में अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कानूनी कार्रवाई और कदम उठाए जा रहे हैं।
खालिस्तानी समर्थक संगठन के दस सदस्य, जिनमें इसके शीर्ष नेता अमृतपाल सिंह और उनके एक चाचा भी शामिल हैं, पिछले साल 19 मार्च से डिब्रूगढ़ की जेल में बंद हैं, जब उन्हें संगठन पर कार्रवाई के बाद पंजाब के विभिन्न हिस्सों से एनएसए के तहत गिरफ्तार किया गया था।
पंजाब से कट्टरपंथी संगठन के सदस्यों को वहां लाए जाने के बाद जेल में बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाए गए और सभी ख़राब कैमरे या तो बदल दिए गए या उनकी मरम्मत कर दी गई।
डिब्रूगढ़ जेल पूर्वाेत्तर की सबसे पुरानी और सबसे उच्च सुरक्षा वाली जेलों में से एक है। इसका निर्माण 1859-60 में हुआ था।

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