“छत्तीसगढ़ ग़ैरक़ानूनी धर्मांतरण रोकथाम विधेयक ” 60 दिन पहले डीएम को देनी होगी सूचना !

आपत्ति की स्थिति में उस व्यक्ति द्वारा एफआईआर दर्ज की जा सकती है, जो धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति से खून या गोद लेने से संबंधित है. इसमें कहा गया है कि मामला गैर-जमानती होगा और सत्र अदालत द्वारा सुनवाई योग्य होगा.
नाबालिगों, महिलाओं या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का अवैध रूप से धर्मांतरण कराने वालों को कम से कम दो साल और अधिकतम 10 साल की जेल होगी, साथ ही न्यूनतम 25,000 रुपये का जुर्माना लगेगा.
सामूहिक धर्म परिवर्तन पर कम से कम तीन साल और अधिकतम 10 साल की सजा और 50,000 रुपये जुर्माना होगा. अदालत धर्म परिवर्तन के पीड़ित को 5 लाख रुपये तक का मुआवजा भी मंजूर कर सकती है.
इसमें कहा गया है कि यह साबित करने का भार कि धर्मांतरण अवैध नहीं था, अनुष्ठान आयोजित करने वाले व्यक्ति पर होगा.
यह कानून उन लोगों पर लागू नहीं होता जो अपने पिछले धर्म में वापस धर्मांतरण करना चाहते हैं.
पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान राज्य ने कोंडागांव और नारायणपुर जैसे जिलों में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों पर हमले के कई उदाहरण देखे. विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने धर्मांतरण को चुनावी मुद्दा बनाया था.
यह जशपुर के पूर्व शाही परिवार के दिवंगत केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव थे, जिन्होंने सबसे पहले अपने जिले में ‘घर वापसी’ अभियान को बढ़ावा दिया था.
छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री के अनुसार ‘जूदेव जी ने जशपुर में घर वापसी अभियान चलाया, जिससे हमारा जिला सुरक्षित है. अन्यथा एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च हमारे जिले में है और धर्मांतरण तेजी से होता है. हालांकि वह एक राजा थे, लेकिन उन्होंने धर्मांतरित लोगों के पैर धोए और उन्हें हिंदू धर्म में वापस लाए और आज उनका बेटा इस काम को आगे बढ़ा रहा है.’

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